April 7, 2025 Shabnam chauhan
पिरुल एकत्रीकरण अभियान से ग्रामीणों को मिलेगा रोजगार, जंगलों को मिलेगा संरक्षण : जिलाधिकारी
पौड़ी। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने कहा कि जनपद में पिरुल (चीड़ की पत्तियां) एकत्रित करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा। यह अभियान न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों के लिए स्वरोजगार का सशक्त माध्यम भी सिद्ध होगा। कहा कि पिरूल (चीड़ के सूखे पत्ते) एकत्रित करने से जंगलों को आग से बचाया जा सकता है, क्योंकि पिरूल आग को तेजी से फैलाता है और इसे एकत्रित कर आग के खतरे को कम किया जा सकता है।
जिलाधिकारी ने कहा कि जिन विभागों या क्षेत्रों के आसपास अत्यधिक मात्रा में पिरुल फैला हुआ है, वे प्राथमिकता के आधार पर पिरुल एकत्रित करेंगे। इसके बाद इच्छुक फर्म एवं संगठन इन एकत्रित पिरुल को वन विभाग के माध्यम से 10 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीद सकेंगे। राज्य सरकार द्वारा पूर्व निर्धारित 3 रुपए
प्रति किलोग्राम की दर में बढ़ोतरी कर इसे अब 10 रुपए
प्रति किलोग्राम किया गया है, जिससे यह कार्य ग्रामीणों के लिए और अधिक लाभकारी हो गया है।
डॉ. चौहान ने बताया कि यह पहल न केवल सरकारी कार्यालयों तक सीमित रहेगी, बल्कि जंगल से सटे गांवों और उन क्षेत्रों में भी यह पहल की जाएगी जहां पिरुल की अधिकता है। इससे स्थानीय लोग इस अभियान से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकेंगे।उन्होंने यह भी कहा कि पिरुल एकत्रीकरण में स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं भी सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं। इस कार्य के माध्यम से वे अन्य स्वरोजगार के साथ-साथ इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा सकती हैं। जिलाधिकारी ने कहा कि पिरुल के उचित तरीके से एकत्र होने से जंगलों में आग की घटनाओं को रोका जा सकता है, जिससे वन संपदा के साथ साथ वन्य जीवों की सुरक्षा भी होगी। उन्होंने कहा कि यह पहल भविष्य में जिले के अन्य क्षेत्रों में भी विस्तारित की जाएगी, जिससे पर्यावरणीय संतुलन और ग्रामीण विकास दोनों के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें। उन्होंने पिरुल को एकत्रित करने का प्लान डीएफओ व अपर जिलाधिकारी को तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
वहीं डीएफओ गढ़वाल स्वप्निल अनरुद्ध ने बताया कि विगत वर्ष जनपद में 18 हजार 900 कुंतल पिरुल एकत्रित किया गया, जिसमें लगभग 58 लाख का राजस्व प्राप्त हुआ है।
पिरूल एकत्रित करने के फायदे:
जंगलों में आग लगने का खतरा कम होता है, स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, पिरूल का उपयोग बायोमास ईंधन के रूप में किया जा सकता है, पिरूल से पैलेट्स और ब्रिकेट्स बनाए जा सकते हैं।