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Bharatendu Harishchandra’s house should be made a national memorial tourist spot – Jeetmani Painuli

उत्तरप्रदेश सरकार और केंद्र सरकार युग पुरुष भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के घऱ  राष्ट्रीय स्मारक पर्यटक स्थल  बनाया जाय  जीतमणि पैन्यूली

एक जमाने में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार (ईस्ट इंडिया कंपनी) बनारस के सेठ अमीं चंद जी से फिनांस की सहायता प्राप्त करती थी….
और, इन्ही अमीं चंद जी के पौत्र थे भारतेंदु हरिश्चंद जी।
अकूत धनसंपदा के एकलौते बारिस।
जब ये जवान हुए तो हिन्दुस्तान में उर्दू ही एक मात्र भाषा थी। बाकी सभी क्षेत्रीय भाषाएँ थीं।

हिंदी के आज का स्वरुप भारतेंदु जी की ही देन है।
इन्होंने काशी में ही नागिरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की जो आज मात्र एक जीर्ण इमारत बन कर रह गयी है।

भारतेंदु जी ने घोषणा करवायी थी के जो व्यक्ति हिंदी में एक दोहा लिख कर उनके पास ले जाएगा उसको वे एक अशर्फी देंगे।
बस फिर क्या था, ये गरीब भारत हिंदी सीखने लगा।

भारतेंदु जी का कहना था के उनकी संपदा सही मायने में हिन्दुस्तान की जनता की संपदा है।
36 वर्ष की अल्पायु में वो पूरी तरह निर्धन होकर मोक्ष को प्राप्त हुए।

उनका घर पुराने काशी के बीच है जिसमें आज साड़ियों की दूकान खुली है।
65 सालों में सरकारों ने उनकी स्मृति और हिन्द की धरोहर की ये खिदमत की है।

अगर भारतेंदु जी ने अपना योगदान उर्दू को दिया होता तो आज सरकारेँ उनको सर पे बिठाए घूम रही होती।

आप शेक्सपियर का घर देखिये, आज वो एक पर्यटन स्थल है जबकि उसने भारतेंदु जी के मुकाबले एक चौथाई काम भी नहीं किया होगा….
भारतेंदु जी का घर देखिये, इस महापुरुष के घर की क्या हालत कर दी….

जय हिन्द, जय हिंदी
भारतेंदु जी की जय 🇮🇳


9 सितम्बर/जन्म-दिवस
*युग प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र*

हिन्दी साहित्य के माध्यम से नवजागरण का शंखनाद करने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी में 9सितम्बर, 1850 को हुआ था।
इनके पिता श्री गोपालचन्द्र अग्रवाल ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे और ‘गिरिधर दास’ उपनाम से भक्ति रचनाएँ लिखते थे।
घर के काव्यमय वातावरण का प्रभाव भारतेन्दु जी पर पड़ा और पाँच वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपना पहला दोहा लिखा –

लै ब्यौड़ा ठाड़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान।
बाणासुर की सैन्य को, हनन लगे भगवान्।।

यह दोहा सुनकर पिताजी बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया कि तुम निश्चित रूप से मेरा नाम बढ़ाओगे।

भारतेन्दु जी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। उन्होंने देश के विभिन्न भागों की यात्रा की और वहाँ समाज की स्थिति और रीति-नीतियों को गहराई से देखा।
इस यात्रा का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
वे जनता के हृदय में उतरकर उनकी आत्मा तक पहुँचे।
इसी कारण वह ऐसा साहित्य निर्माण करने में सफल हुए, जिससे उन्हें युग-निर्माता कहा जाता है।

16 वर्ष की अवस्था में उन्हें कुछ ऐसी अनुभति हुई, कि उन्हें अपना जीवन हिन्दी की सेवा में अर्पण करना है।
आगे चलकर यही उनके जीवन का केन्द्रीय विचार बन गया।

उन्होंने लिखा है –
निज भाषा उन्नति अहै,
सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान कै,
मिटे न हिय को सूल।।

भारतेन्दु ने हिन्दी में ‘कवि वचन सुधा’ पत्रिका का प्रकाशन किया।
वे अंग्रेजों की खुशामद के विरोधी थे।
पत्रिका में प्रकाशित उनके लेखों में सरकार को राजद्रोह की गन्ध आयी।
इससे उस पत्र को मिलने वाली शासकीय सहायता बन्द हो गयी; पर वे अपने विचारों पर दृढ़ रहे। वे समझ गये कि सरकार की दया पर निर्भर रहकर हिन्दी और हिन्दू की सेवा नहीं हो सकती।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की राष्ट्रीय भावना का स्वर ‘नील देवी’ और ‘भारत दुर्दशा’ नाटकों में परिलक्षित होता है।
अनेक साहित्यकार तो भारत दुर्दशा नाटक से ही राष्ट्र भावना के जागरण का प्रारम्भ मानते हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अनेक विधाओं में साहित्य की रचना की।
उनके साहित्यिक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पण्डित रामेश्वर दत्त व्यास ने उन्हें ‘भारतेन्दु’ की उपाधि से विभूषित किया।

प्रख्यात साहित्यकार डा. श्यामसुन्दर व्यास ने लिखा है – जिस दिन से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपने भारत दुर्दशा नाटक के प्रारम्भ में समस्त देशवासियों को सम्बोधित कर देश की गिरी हुई अवस्था पर आँसू बहाने को आमन्त्रित किया, इस देश और यहाँ के साहित्य के इतिहास में वह दिन किसी अन्य महापुरुष के जन्म-दिवस से किसी प्रकार कम महत्वपूर्ण नहीं है।

भारतेन्दु हिन्दी में नाटक विधा तथा खड़ी बोली के जनक माने जाते हैं।
साहित्य निर्माण में डूबे रहने के बाद भी वे सामाजिक सरोकारों से अछूते नहीं थे।
उन्होंने स्त्री शिक्षा का सदा पक्ष लिया।
17 वर्ष की अवस्था में उन्होंने एक पाठशाला खोली, जो अब हरिश्चन्द्र डिग्री कालिज बन गया है।

यह हमारे देश, धर्म और भाषा का दुर्भाग्य रहा कि इतना प्रतिभाशाली साहित्यकार मात्र 35 वर्ष की अवस्था में ही काल के गाल में समा गया।
इस अवधि में ही उन्होंने 75 से अधिक ग्रन्थों की रचना की, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।
इनमें साहित्य के प्रत्येक अंग का समावेश है।

उत्तरप्रदेश सरकार और केंद्र सरकार युग पुरुष भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के घऱ  राष्ट्रीय स्मारक पर्यटक स्थल  बनाया जाय  जीतमणि पैन्यूली

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