editor Shabnam chauhan
नए कानून में यौन उत्पीड़न जैसे अपराध को धारा 74 से 76 के तहत परिभाषित किया गया है और ये कोई खास बदलाव नहीं किया गया है.
आईपीसी में यौन उत्पीड़न के अपराधों को धारा 354 में परिभाषित किया गया था. साल 2013 में ‘आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013’ के बाद इस धारा में चार सब सेक्शन जोड़े गए थे, जिसमें अलग अलग अपराध के लिए अलग अलग सजा के प्रावधान थे.
आईपीसी की धारा 354ए के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ सेक्सुअल नेचर का शारीरिक टच करता है और मर्जी के खिलाफ पोर्न दिखाता है तो उसके लिए तीन साल तक की सजा, जुर्माना या दोनों का प्रावधान था.
354 बी के तहत अगर कोई आदमी किसी महिला के जबरन कपड़े उतारता है या फिर ऐसा करने की कोशिश करता है तो ऐसे मामलों में तीन से सात साल तक की सजा के साथ जुर्माने का प्रावधान किया गया था
354 सी के तहत महिला के प्राइवेट एक्ट को देखना, उसकी तस्वीरें लेना और प्रसारित करना अपराध था, जिसके लिए एक से तीन साल की सज़ा का प्रावधान था. अपराध दोहराने पर जुर्माने के साथ सजा बढ़कर तीन से सात साल तक हो जाती थी.
पीछा करने पर कितनी सज़ा
नए कानून में क्या- धारा 77 के मुताबिक महिला का पीछा करने, मना करने के बावजूद बात करने की कोशिश, ईमेल या किसी दूसरे इंटरनेट संचार पर नजर रखने जैसे अपराधों को इसमें परिभाषित किया गया है, जिसमें आईपीसी की तरह ही सज़ा का प्रावधान है यानी कोई बदलाव नहीं किया गया है.
पहले क्या था- इस तरह की हरकतों को अपराध माना गया था. आईपीसी की धारा 354डी के तहत पहली बार इस तरह के अपराध करने पर जुर्माने के साथ सजा को तीन साल तक बढ़ाया जा सकता था वहीं अगर दूसरी बार अपराध करने पर जुर्माने के साथ सजा को पांच साल के लिए बढ़ाए जाने का प्रावधान था.
शादीशुद महिला को फुसलाना भी अपराध माना गया है.भारतीय न्याय संहिता की धारा 84 के तहत अगर कोई शख्स किसी शादीशुदा महिला को फुसलाकर, धमाकर या उकासाकर अवैध संबंध के इरादे से ले जाता है को ये दंडनीय अपराध है. इसमें 2 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है.
दहेज हत्या को लेकर कोई बदलाव नहीं
कानून के मुतबिक अगर शादी के सात सालों के अंदर किसी महिला की मौत जलने, शारीरिक चोट लगने या संदिग्ध परिस्थितियों में होती है और बाद में ये मालूम चले कि महिला की मौत का जिम्मेदार उसका पति, पति के रिश्तेदारों की तरफ से उत्पीड़न तो उसे ‘दहेज हत्या’ माना जाएगा.
भारतीय न्याय संहिता में धारा 79 में दहेज हत्या को परिभाषित किया गया है और सजा में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है. यानी जिस तरह की सजा की व्यवस्था आईपीसी में थी ठीक वही सजा का प्रावधान नई भारतीय न्याय संहिता में भी है.
पहले क्या था- आईपीसी की धारा 304बी के तहत कम से कम सात साल कैद की सज़ा की बात है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है.
अडल्ट्री अब अपराध नहीं
भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है. अडल्ट्री को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 497 को जिसमें अडल्ट्री के नियमों को बताया गया है उसे सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मनमाना होने और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करने के कारण रद्द कर दिया था.
इटली में रहने वाले प्रवासी भारतीय जोसेफ शाइन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. जिस पर फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि ऐसा कोई भी कानून जो व्यक्ति कि गरिमा और महिलाओं के साथ समान व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, वह संविधान के खिलाफ है.
अडल्ट्री पर कानून 1860 में बना था. आईपीसी की धारा 497 में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया था कि अगर कोई मर्द किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर इस मामले में पुरुष को अडल्ट्री कानून के तहत आरोप लगाकर मुकदमा चलाया जा सकता था. ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सजा का प्रवाधान भी था.
इन बदलावों का हुआ स्वागत
जांच-पड़ताल में अब फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने को अनिवार्य बनाया गया है. सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा इस्तेमाल, जैसे खोज और बरामदगी की रिकॉर्डिंग, सभी पूछताछ और सुनवाई ऑनलाइन मॉड में करना. इन बदलावों का कई विशेषज्ञों ने स्वागत भी किया गया है. हालाँकि, यह कितना प्रभावी होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे कैसे लागू किया जाता है. एफआईआर, जांच और सुनवाई के लिए अनिवार्य समय-सीमा तय की गई है. उदाहरण के लिए, अब सुनवाई के 45 दिनों के भीतर फैसला देना होगा, शिकायत के 3 दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी.
तो ये थी एक चर्चा हाई कोर्ट नैनीताल के अधिवक्ता ललित मिगलानी के साथ। आगे भी किसी मुद्दे को लेकर हम इनसे ऐसे ही जानकारी लेते रहेंगे