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 दून में जाम की समस्या से निजात पाना बना चुनौती ।

देहरादून। दून में जाम के झाम को झेल रही जनता के लिए अधिकारी आये दिन प्रयोग करते दिखायी देते है और उनके यह प्रयोग जनता के लिए कोढ में खाज का काम कर रहा है।
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद दून को अस्थायी राजधानी का दर्जा मिलना यहां की जनता के लिए परेशानी का सबब बन गया था। बाहरी प्रदेशों से यहां पर काफी संख्या में लोग आकर बस गये और सभी विभागों के मुख्यालय दून में बनने से पूरे प्रदेश से यहां पर लोगों की आवाजाही शुरू हो गयी। जिसके बाद से जैसे यहां के निवासियों के लिए जाम एक रोजमर्रा की समस्या बन गया। सडके वहीं चौराहे भी वही, न तो सडकों का चौडीकरण किया गया और न ही चौराहों में कोई बडा बदलाव किया गया और वाहनों का भार बढता चला गया जिसका नतीजा शहर के हर चौराहे में जाम लगना शुरू हो गया। मुसीबत की बात तो तब हो गयी जब जाम से बचने के लिए वाहन चालक गलियों का सहारा लेने लगे तो गलियों में रहने वालों के लिए भी यह एक समस्या बन गयी। गली में खेलने वाले बच्चे इन वाहनों की चपेट में आकर घायल होने लगे जिससे बच्चों के खेलने पर ही परिजनों ने प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन यह समस्या जस की तस बनी हुई है। ऊपर से जो अधिकारी दून में यातायात की कमान सम्भालता है वह यहां पर अपने हिसाब से प्रयोग करना शुरू कर देता है। कोई अधिकारी सडकों पर रस्सियां लगाकर यातायात को दुरूस्त करने का दम भरता है तो कोई यातायात कार्यालय में पार्क बनाकर लोगों को यातायात के नियमों का पाठ पढाता दिखायी देता है तो कोई यातायात कार्यालय में डाकुमेंट्री दिखाकर यातायात में सुधार लाने का प्रयोग करता है। अब इन अधिकारियों को कोई समझाये की पार्क व फिल्म दिखाकर अगर यहां का यातायात सुधरता तो फिर कोई समस्या ही नहीं थी। लेकिन धरातल पर आकर किसी ने भी दून की यातायात को समझने व इसके लिए कोई ठोस रणनीति बनाने का प्रयास नहीं किया। अब एक नया प्रयोग दून में किया जा रहा है। स्कूलों के समय में परिवर्तन करके। स्कूलों के समय में परिवर्तन करके शहर के यातायात को दुरूस्त करने का यह नया प्रयोग है। जोकि दो दिन में सफल होता दिखायी नहीं दे रहा है। स्कूलों के समय में परिवर्तन करके स्कूलों के आसपास के यातायात को तो सम्भाला जा सकता है लेकिन पूरे शहर के यातायात को कैसे सही किया जायेगा इसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। केवल कर्जन रोड, ईसी रोड ही यातायात की समस्या से जुझ रहा है तो फिर घंटाघर, चकराता रोड, सहारनपुर चौक पटेलनगर, माजरा, राजपुर रोड में रहने वाले क्या शहर के वासी नही हैं। जाम की समस्या यहां भी है लेकिन अधिकारियों को एक दो स्थानों के अलावा शायद अन्य जगह से कोई मतलब नहीं है। इस लिए अधिकारियों को चाहिए की शहर को प्रयोगशाला न बनाकर कोई ठोस रणनीति बनाये और अगर कोई ठोस रणनीति नहीं है तो जनता को अपने हाल पर छोड दें। अपने प्रयोग से कोढ में खाज का काम न करें जिससे जनता बिलबिला जाये।

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