जल्द लागू होगा पत्रकार सुरक्षा कानून : जवाहर सिंह बेढम
राजस्थान ।
राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में शनिवार को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर इंडियन फेडरेशन ऑफ स्मॉल एंड मीडियम न्यूजपेपर्स द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मौजूद मुख्य अतिथि जवाहर सिंह बेढम ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गहन चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा जल्द ही एक प्रतिनिधि मंडल के साथ सरकार की बैठक होगी, जिसमे पत्रकार सुरक्षा कानून को अमल में लाने पर सहमति हो सकती है। कार्यक्रम की नोट स्पीकर और भारतीय जनता पार्टी के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के सहसंयोजक मनोज शर्मा ने छोटे और मझोले समाचार पत्रों को विज्ञापन जारी करने में भेदभाव पर चिंता व्यक्त की व नई विज्ञापन नीति बनाने का सुझाव दिया। इस मौके पर मंच पर आईएफएसएमएन की कार्यकारी अध्यक्ष मंजू सुराना, पिंकसिटी प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष अभय जोशी, पत्रकार बलविंदर बल, ग्रेटर महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर और पूर्व अतिरिक्त निदेशक अरुण जोशी उपस्थित थे। इस अवसर पर तेलंगाना से सीएच रामाकृष्णा, वाई श्रीनिवास, जी श्रीनिवास, उत्तराखंड से जीत मणि पैन्यूली, कर्नाटक से देश पांडेय और महाराष्ट्र से बालासाहब अंबेकर सहित कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
सम्मानित पत्रकारों में जगदीश शर्मा, हर्षा कुमारी, रघु आदित्य, सचिन सेनी और दीपक मेहता, जिनेंद्र सहित कई वरिष्ठ पत्रकार शामिल थे।
इतिहास लिखने के लिए कलम नही!साहिब, हौसलो की जरूरत होती हैःधर्मेन्द्र राघव
राष्ट्रीय प्रेस दिवस दिलाता है मीडिया की स्वतंत्रता और उसके कर्तव्यों की याद ।
अलीगढ़। राष्ट्रीय मीडिया महासंघ की अलीगढ़ टीम द्वारा राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार कलम के पुरोधा स्व. श्री गणेश शंकर विद्यार्थी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।
राष्ट्रीय मीडिया महासंघ के जिलाध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार धर्मेन्द्र राघव ने गोष्ठी को संबोधित करते हुये कहा कि इतिहास लिखने के लिए कलम नही!
साहिब, हौसलो की जरूरत होती है!
उन्होंने बताया कि हर साल 16 नवंबर को नेशनल प्रेस डे मनाया जाता है। यह भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का प्रतीक है। साल 1966 में आज ही के दिन प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का गठन हुआ था। बता दें कि मीडिया गुणवत्ता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने का काम करता है। नेशनल प्रेस डे पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और समाज में मीडिया के योगदान को पहचानने का अवसर है। यह दिन अधिकारों, कर्तव्यों और उसके महत्व को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
राष्ट्रीय मीडिया महासंघ अनुशासन समिति के प्रदेश चेयरमैन मुशीर अहमद खां ने कहा कि भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता और उसकी जिम्मेदारी को सम्मानित करने के लिए यह दिन तय किया गया है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होता है। नेशनल प्रेस डे के मौके पर मीडिया की भूमिका को लेकर जागरुकता फैलाने का काम किया जाता है और साथ ही इसके महत्व को भी समझाया जाता है। 16 नवंबर 1966 को नेशनल प्रेस डे की शुरूआत हुई थी और इसी दिन प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का गठन हुआ था।
कहा कि राष्ट्रीय प्रेस दिवस मीडिया की स्वतंत्रता और उसके कर्तव्यों की याद दिलाता है, यह दिन पत्रकारिता के क्षेत्र में निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और जिम्मेदारी की आवश्यकता को समझाता है। साथ ही, यह समाज में जागरूकता पैदा करता है कि प्रेस लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ के रूप में काम करता है।
पत्रकार अनवर खान एवं फरहत अली खां ने कहा कि देश व समाज की बेहतरी में हर किसी की अपनी भूमिका है। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है, इसलिए समाजहित में उनकी भूमिका ओर भी महत्वपूर्ण हो जाती है। वरिष्ठ पत्रकार काजी नसीमुद्दीन ने कहा कि कहा कि आजादी के समय से लेकर अब तक देश में मीडिया का बहुत बड़ा रोल रहा है। उन्होंने कहा कि यदि व्यक्ति आंतरिक रूप से स्वयं को मजबूत बनाता है, तो वह अपने जीवन में ओर अधिक बेहतर करने में सक्षम बनता है।
डिजिटल युग में हमें स्वयं को तकनीकी तौर पर भी सशक्त बनाना होगा, ताकि उद्योग मांग अनुरूप परिणाम हासिल हो, जिससे इस दिशा में करियर को नई ऊंचाई मिल सके। इस अवसर पर सत्यवीर सिंह यादव, फरहत अली, अनवर खान, मुशीर अहमद, विशाल नारायण, धर्मेंद्र राघव, मोहम्मद राशिद, गुलाब नबी, राजेंद्र कुमार, वीरेंद्र अरोड़ा, दुष्यंत यादव, आशीष वार्ष्णेय, काजी नसीम, वसीम खान, बबलू, मुशीर अहमद, नगमा राव, मनोज चौहान, शाहिद चौहान, आबिद, मुख्तार अहमद आदि दर्जनों पत्रकार बंधु मौजूद थे।
लोकतन्त्र की छांव में राष्ट्रपति देश के राजा क्यों बन रहे हैं?
दुनिया के सबसे बडे़ लोकतन्त्र इंडिया यानि भारत में उत्तराखंड राज्य के हाईकोर्ट ने संविधान के तत्वाधान में राष्ट्रपति शासन हटाने का ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहां था की राष्ट्रपति कोई राजा नहीं होता हैं । इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि राष्ट्रपति को प्रक्रियाओं के मार्ग पर चलते हुए ही फैसला देना होगा न की स्वयं के विवेक के आधार पर, यदि स्वयं के विवेक से कोई फैसला लेना पडे तब भी पहले उसे ठोस प्रक्रिया के माध्यम से पुष्टि करते हुए लागू करना होगा ताकि पारदर्शिता लोगों को नजर आये व न्याय की मर्यादा से भेदभाव, पक्षपात जैसे शंशय किसी के दिमाग में उपज नहीं सके |
अठारवी लोकसभा के लिए चुनावी प्रक्रिया पुरी हो गई व चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने विधिवत रूप से शपथ लेकर अभी तक सांसद होने का अधिकार भी प्राप्त नहीं किया और लोकसभा अध्यक्ष का चयन भी नहीं हुआ | इसी कारण राष्ट्रपति ने संविधान के अनुसार किसी को लोकसभा अध्यक्ष पद की शपथ नहीं दिलाई और न कोई अधिकार दिये हैं | इसके विपरित लोकसभा अध्यक्ष से छोटे संवैधानिक पद प्रधानमंत्री के लिए उन्होंने स्वयं सबसे बडे़ राजनैतिक दल के नेता या सबसे बडे़ चुनाव पूर्व के गठबंधन के नेता को बुलाकर या उनके आवेदन पर नेता का चयन कर उसे व उसके मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद व गोपनीयता की शपथ दिला दी | राष्ट्रपति ने अपने इस आदेश पत्र में जो उनके सचिवालय द्वारा जारी हुआ उसमें सरकार गठन का लिखा या कार्यपालिका के प्रमुख जिसे प्रधानमंत्री भी कहते हैं और उसके सदस्यों का भी लिखा यह हमें नहीं मालूम हैं ।
संविधान के अनुसार यह सिर्फ़ कार्यपालिका का गठन हैं न कि भारत-सरकार का गठन हैं परन्तु अधिकांश मीडिया दसों दिशाओं में झूठ का यह ढोल पीट डाला की सरकार का गठन किया गया | मेन लाईन मीडिया और गोदी मीडिया में बांट कर लोगों को तर्क समझाना तो बहुत दूर की बात हैं जबकि पत्रकारिता यानि मीडिया का खुद का कोई संवैधानिक चेहरा नहीं हैं व देश के प्रति निष्ठा के लिए कोई जवाबदेही वाले कानूनी अधिकार भी नहीं हैं । यह सिर्फ हम लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ होने का जुबानी राग लोगों को सुना-सुनाकर अपना खोटा सिक्का चलाते रहते हैं ।
संविधान के अनुसार राष्ट्रपति स्वयं कोई फैसला नहीं ले सकते हैं उन्हें किसी अन्य संवैधानिक पद व उसके संगठन की सलाह के आधार पर फैसला देना होता हैं । नई कार्यपालिका गठन के मामले में तो उन्होंने स्वयं एक राजा की तरह फैसला सुना दिया | यदि प्रारम्भ से चली आ रही प्रक्रिया के तहत उन्होंने नई कार्यपालिका गठन का निमंत्रण दिया तो सीधे प्रधानमंत्री पद व उसके केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों को शपथ नहीं दिलानी चाहिए थी | लोकतन्त्र की मर्यादा व जनता के सामने पारदर्शिता बनाये रखने के लिए पहले लोकसभा में बहुमत साबित करने का बोलते फिर शपथ दिलाते | इससे कोई देश पर आपत्ति नहीं आने वाली थी क्योंकि नये प्रधानमंत्री के पदभार तक पुराने प्रधानमंत्री सभी कार्य की जवाबदेही निभा रहे थे |
जब संविधान संरक्षक ही भक्षक बन जाये तो लोकतन्त्र बर्बाद होने का रोना छाती पीट-पीटकर करना घडियाली आंसुओं को भी शर्म से लज्जित कर देता हैं । लोकसभा में बहुमत साबित करे बिना ही मंत्री पद बांट दिये गये और केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मीटिंग हो रही हैं व बड़े-बड़े फैसले लिये जा रहे हैं। इससे भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद, डर बताकर वसूली जैसे अधिकांश अपराधों को लोकतन्त्र में पैदा करने का बीज बो दिया गया फिर आने वाले पांच वर्षों तक आम लोगों को कौसा जायेगा, आर्थिक दण्ड लगा-लगाकर लूटा जायेगा और जबरदस्ती का उपदेश झाडा जायेगा कि पहले तुम सुधरों फिर दुसरों की बात करना |
पैसा, पद, अधिकार, ताकत सभी रिश्वत के तौर पर बंटने लगेगे व सरकारी अधिकारी कानूनी डंडे के रूप में बरसाये जायेंगे तो कोई भी लोकसभा में अपना बहुमत साबित कर देगा | यदि फिर भी बहुमत साबित नहीं हुआ तो प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाला व्यक्ति इस्तीफा दे देगा परन्तु हमेशा के लिए देश के स्वर्णिम इतिहास, पेंशन के रूप में आर्थिक रूप से जनता की छाती पर बोझ, दूसरे देशों के प्रमुखों को शासकीय मेहमान के रूप में बुलाकर व शपथ के नाम पर करोडों रूपये जो टैक्स के रूप में जनता के मुंह के निवाले से छीना गया उसे पानी की तरह बहा दिया जायेगा |
कार्यपालिका के गठन की जो प्रक्रिया राष्ट्रपति ने करी वो ही प्रक्रिया सभी राज्यों में राज्यपालों द्वारा वहाँ की कार्यपालिका गठन में दौहराई जायेगी | इससे भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, भाई-भतीजावाद सहित डर, वसूली जैसे अधिकांश अपराध हर कौने-कौने में पहुंचा दिया जायेगा | महाराष्ट्र में रातोंरात कार्यपालिका का गठन, राज्यपाल के फैसलों व क्रियाकलापों को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने असंवैधानिक ठहराया था यह अपने आप में एक ज्वलंत उदाहरण हैं । इस फैसले के बाद व्यवस्था में क्या सुधार हुआ ताकि ऐसी घटना किसी भी राज्य में ना हो उसके नाम पर त़ो शून्य ही साबित हो गये |
किसी अपराधी को कोई सजा नहीं उल्टा संवैधानिक मर्यादा व लोकतन्त्र को बर्बाद करके जैबे भरने व मलाई चाटने का कानूनी रूप से चोर रास्ता बना दिया गया | उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ का गठन, उसके फैसले सबकुछ फालतू व लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए हैं ताकि गलत को गलत ही बना रख के जनता को हैरान व परेशान रखकर उसके पैसों पर मौजमस्ती करी जा सके |
सबसे ऊपर के स्तर से सुधार करना पडेगा अन्यथा नीचे के स्तर तो बहुत जल्दी व आसानी से बर्बाद हो जायेगा यहाँ ढूंढने पर लोकतन्त्र तो क्या उसकी राख भी नहीं मीलेगी | इसी तरह आगे बढा गया तो आगे आने वाली नई पीढ़ी दसवीं, बाहरवी, डिग्री, डिप्लोमा के सर्टिफिकेट पहले मांगेगी और कहेगी हम पास होकर बता देंगे यदि नहीं हुये तो सर्टिफिकेट आपको ईमानदारी से वापस लौटा देंगे |