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The public uprising in Bangladesh, Sri Lanka and other countries is knocking at the door to make India a world leader

The public uprising in Bangladesh, Sri Lanka and other countries is knocking at the door to make India a world leader

साइंटिफिक-एनालिसिस

बांग्लादेश, श्रीलंका व अन्य देशों का जनविद्रोह दस्तक दे रहा हैं भारत को विश्वगुरु बनाने की

आरक्षण को लेकर छात्र आन्दोलन से शुरू हुए जनविरोध से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को इस्तीफा देकर भागने से पुरी दुनिया स्तब्ध हैँ | इस तरह जनविद्रोह से तख्तापलट का नजारा एक वर्ष पूर्व श्रीलंका में देखने को मीला | सेना के माध्यम से तख्तापलट तो आम बात हैं परन्तु जनता के विद्रोह से सत्ता को उखाड़ फेंकना व सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के घरों एवं दफ्तरों में घुस जाना इक्कीसवीं सदी का नया ट्रैंड बनकर उभरा हैं | तख्तापलट समय के बढते चक्र के साथ इंसानी सोच के विकसित होने व भेदभाव, सामाजिक जीवन में सुविधाओं के अभावों की बढती खाई व ताकत एवं भौतिक सुख-सुविधाओं के सर्वाधिक की सोच से पनपे, लोभ, लालच, ईष्या, घृणा, नफरत के मायाजाल की पटकथा हर देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के ईतिहास के साथ चोली दामन की तरह चिपकती जा रही हैं।

दक्षीणी अमेरिकी देश बोलिविया सबसे ज्यादा तख्तापलट का परचम रखता हैं | यहां 1950 से 1989 तक के 39 सालों में 350 तख्तापलट व 1990 से 2019 यानि 19 वर्षों में 113 बार तख्तापलट की घटना हुई महाद्वीप के रूप में देखे तो अफ्रीकी देश सबसे आगे नजर आते हैं | नाइजर, ट्यूनिशीया जैसै देशों की सुर्खिया आपने भी सुनी होगी | ईराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार जैसे देशों ने एशीया महाद्विप को तख्तापलट में पिछडने नहीं दिया हैं | लोकतन्त्र के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में भी लोगों का व्हाईट हाऊस में घुसना व तोडफोड मचा देना तख्तापलट की धुंधली छवि सामने रखता हैं |

भारत में भी जयप्रकाश नारायण, अन्ना हजारे जैसे जन आन्दोलन हुए व दिल्ली में निर्भया काण्ड के समय लोगों का रायसीना हिल्स पर सरकारी मंत्रालयों के ऊपर तक चढ़ जाना अपने आप में दिल एवं दिमाग के बिना आंखे खोल देने वाले घटनाक्रम हैं | अब व्यक्तिवाद के दौर में चन्द राजनेता लोग अपनी संकुचित म मानसिकता के कारण बांग्लादेश व श्रीलंका के सत्ता परिवर्तन के नये ट्रैंड को देखकर बोल रहे हैं कि जनता अपनी परेशानियों, तकलीफों और सरकारों की निरंकुश नीति एवं भेदभाव वाले कानूनों के कारण सत्ता में बैठे लोगों के घर में घुसकर उन्हें बाहर निकाल फेंकेगी | जन आक्रोश अंग्रेजों की गुलामी के समय शहीद भगत सिंह, सहदेव व राजगुरू की ट्रैंड की तरह आजाद भारत में बेरोजगार युवाओं के संसद में घुंस धुंआ करने वाली लडियों से हुआ |

यह सब दुनियाभर के जन आन्दोलन शुरु तो लोगों की समस्याओं, भेदभाव व उन पर दमन से होते है परन्तु बाद में राजनीति की धुर्त व कपटी चालों में उलझ कर खत्म हो जाते हैं। वर्तमान सत्ता के अन्दर बैठे राजनैतिक लोगों के विपरीत जो भी विपक्षी राजनैतिक दल होते है उन्हें यह सिर्फ सत्ता की गद्दी पर लोकतन्त्र की दुआई वाली बैसाखियों के सहारे बैठा देते हैं। इसके आगे कुछ भी नहीं होता व हो सकता हैं क्योंकि व्यवस्था व शासन करने का ढांचा वैसा का वैसा ही रहता हैं | इसलिए कितना भी जनप्रिय, जनहितैषी, विनम्र, मृदुभाषी, आत्मीय, अपराधों व अत्याचारों के प्रति कठोर रवैया रखने वाला भी सत्ता की कुर्सी पर बैठ जाये तो वह भी कुछ समय के पश्चात् जनविरोधी, राष्ट्रविरोधी, हठी, सत्ता लौलूप, अयोग्य, अदूरदर्शी, तानाशाह लगने लगता है। यह सब लोकतन्त्र में राजाओं की तरह शासन करने के सिद्धांत राजनीति से अभी तक जकड़े रहने के कारण होता हैं जबकि होना लोकनीति सिद्धान्त व राजनैतिक दलों / एक सोच वाले जनसमूह / व्यक्ति आधारित चलन / आक्रमकता व क्रूरता की सेनाओं की जगह वैचारिकवाद के व्यवस्थित जनसमूह होना चाहिए |

वर्तमान में हर सत्ताधीश, संवैधानिक पद पर कार्यरत व्यक्ति, संविधान विशेषज्ञ, कानून जानकार व किसी भी क्षेत्र के सलाहकार से पूछ ले तो सिर्फ कानून बनाकर बदलाव लाने की बात से आगे बढ़ ही नहीं पाता हैं जबकि कानून बनाना स्वयं व्यवस्था का एक हिस्सा है न कि व्यवस्था हैं। यह कटु सत्य शायद महात्मा गांधी समझ गये इसलिए उन्होंने आजादी के बाद कांग्रेस को खत्म करने की बात करी थी परन्तु इसके आगे करना कैसे हैं यह बता नहीं सके | देश में कांग्रेस को खत्म करने की बजाय सैकड़ों नये राजनैतिक दल बना दिये | आजादी के बाद दुनिया का सबसे बडा राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी बनाई व उसे पहले कुछ समय फिर लगातार सत्ता में तीन बार बैठा दिया परन्तु लोगों की मूलभूत समस्या व समय के साथ सतत रूप से आने वाली प्राकृतिक व शासकीय समस्याओं से निपटने का प्रभावी तंत्र विकसित नहीं कर पाये इसलिए फिर जन आन्दोलन की बात करी जा रही हैं। यही सबसे बडे सच का जमीनी प्रमाण हैं |

धन-दौलत, ताकत, हथियार, भौतिकवाद, आडम्बर, गहनों व अच्छे वस्त्र धारण करने, अच्छे स्वास्थ्य एवं भरपूर खाधान्न, अपने से बड़े व महान व्यक्ति के सामने झुककर अभिवादन करने से कतई विश्वगुरु नहीं बना जा सकता हैं | विश्वगुरु बनने के लिए एक बड़ी सोच वो भी भविष्य की परिकल्पना को मूर्त रूप में बदलने की योजना के साथ चाहिए जो गतीशील समय के साथ निरन्तरता बनाये रख सके | जिसे दुनिया का हर देश, व्यक्ति उसे सिद्धान्त के रूप में आधार माने और बिना किसी भेदभाव, टकराव, संकोच, ग्लानि व दिल व दिमाग से अपने को तुच्छ, दबा हुआ एवं छोटा समझे बिना सहर्ष स्वीकारे | आप किसी भी एक राजा को लेले उसने ऐसा आदर्श बनाया वो आजतक महान बनाकर अमर हैं परन्तु उसके साथ वो व्यवस्था खत्म हो गई | आप कोई सा भी धर्म उठाकर देखे उसने अपना प्रादूर्भाव इसी प्रकार शुरू किया और उसके लाखों-करोडों अनुयायी बन गये |

दुनियाभर के सभी देशों की सत्ता, सरकारें सोच के एक निश्चित दायरे पर आकर ठहर गई हैं, उसे आगे बढने के लिए अच्छी व बड़ी सोच के रूप में एक आगे बढता हुआ पथ चाहिए | खत्म होते लोकतन्त्र को बचाने के लिए दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने अन्य देशों के सत्ताधीशों के साथ मीलकर एक मुहिम शुरू करी उसमें भारत भी शामिल हुआ परन्तु परिणाम नहीं निकला क्योंकि आधार राजनैतिक हैं। भारत के पास ऐसी ही एक सोच महामहिम राष्ट्रपति के पास 2011 में ही पहुंच गई हैं | यह पुरी दुनिया में पहली बार किसी लोकतन्त्र का सांकेतिक ग्राफिक्स रूप हैं, जो वैज्ञानिक-प्रबंधन के सिद्धान्त पर बनाया गया हैं और जिसके लाखों अर्थ निकलते हैं | यह वो सिद्धान्त हैं जिसके बारे में इंटरनेट की दुनिया का कोई भी सर्च ईंजन कुछ नहीं बताता हैं।

इस को राष्ट्रपति इतने वर्षों से न समझ पा रहे है, न ही उनके सलाहाकार और सरकारी तन्त्र के कर्मचारी समझ पा रहे हैं और व मिलने के लिए समय देते हैं तो निचे के कर्मचारी व सत्ता को अपने कन्ट्रोल में रखने की सोच वाले पदासीन अपनी राजनैतिक चालों से मिलने नहीं देते हैं | यह सब विचाराधीन के नाम पर समय को बर्बाद करता जा रहा हैं। यह समय का अपमान व तिरस्कार न हर ईंसान की जिंदगी पर भारी पड रहा हैं, उसे असमय काल के मुंह का ग्रास बना रहा हैं बल्कि भारत को दुबारा विश्वगुरु बनाने की जगह ईमानदार व निस्वार्थ कर्म के अभाव में उसे गुरू घंटाल बनाने में अग्रसर हैं |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

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